
महिलायें सावधान!! पाईल्स का रोग!! पाइल्स की समस्या
बवासीर या पाइल्स- पचास वर्ष की आयु से अधिक का हर दूसरा मरीज बवासीर की तकलीफ़ से ग्रस्त है.यह बच्चों ,वयस्कों, स्त्री- पुरुषों किसी को नहीं बख्शता. बवासीर के 90% मरीजों में पाइल्स के मस्सों का उगम गुदा के भीतर होता है और वहां से बढ़ते हुए वे गुदा के बाहर आ जाते हैं. उन्हें होने वाली रक्त की आपूर्ति का स्त्रोत भी गुदा से तीन सेंटीमीटर भीतर की ओर होता है. पाइल्स के मस्से अपनी प्रारंभिक अवस्था में कोई दर्द उत्पन्न नहीं करते, उनसे केवल खून बहता है.
मगर अपनी उन्नत अवस्था में गुदा के बाहर आ जाने पर, या उनमें कोई जटिलता पैदा हो जाने पर दर्द उत्पन्न होता है और मरीज दर्द, रक्तस्राव, खुजली या मस्सों से पीड़ित रहता है. इनसे न केवल मल त्याग के समय तकलीफ होती है बल्कि बैठने- उठने, वाहन चलाने और सामान्य शारीरिक गतिविधियों में भी व्यवधान उत्पन्न होता है.
जैसे-जैसे कामकाजी महिलाओं की संख्या में वृद्धि होती जा रही है इस रोग का प्रमाण भी बढ़ रहा है. वे महिलायें,जिन्हें रोजगार की वजह से घंटों खड़े रहना होता है, जैसे कि रिसेप्शनिस्ट, सेल्स गर्ल, इत्यादि, या जो एक स्थान पर घंटों बैठे रहने का काम करती हैं, जैसे बैंक कर्मी, ऑफिस वूमन, टेलीफोन ऑपरेटर इत्यादि , इनमें औरों की अपेक्षा इस रोग का खतरा अधिक रहता है.
खानपान -- आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में भोजन समय, भोजन की गुणवत्ता, संतुलित नहीं रह पाती. उसी प्रकार फास्ट फूड, मिर्च मसालों का अधिक सेवन, तेज, तीखा, तला भोजन भी बवासीर को बढ़ाने में सहायता करता है. महिलाओं में धूम्रपान मद्यपान और तंबाकू के बढ़ते सेवन को भी बवासीर का कारक माना जा सकता है, शारीरिक श्रम का अभाव, कसरत करने का समय न मिल पाना, और मोटापा भी बवासीर को जन्म देता है.
‘मगर इन सबसे ज्यादा आम कारण है गर्भावस्था और प्रसूति”, अधिकतर महिलाएं इसी समय इस बीमारी की चपेट में आती है और फिर यह रोग उनके साथ बना रहता है.
गर्भावस्था में बवासीर होने की वजह है--- गर्भ के बढ़े हुए आकार और वजन से मल मार्ग की शिराओं पर बेजा दबाव पड़ उनका मार्ग अवरुद्ध हो जाता है और वह फूल जाती हैं. गर्भावस्था में अधिक आराम और गरिष्ठ भोजन के सेवन की वजह से कब्ज हो जाना आम बात है और यही कब्ज बवासीर को जन्म देती है। उसी प्रकार गर्भावस्था में खून में रिलेक्सिन नामक हार्मोन बहता है जो खून की नसों को ढीला कर देता है जिसके कारण वे अधिक फूल जाते हैं.
आमतौर पर महिलाएं इसे गर्भावस्था की एक सामान्य स्थिति समझ कर इस पर ध्यान देती नहीं और प्रसूति पश्चात भी इसके लक्षणों की अवहेलना करती रहती है. इस रोग में गुदा की भीतरी दीवारों में मौजूद खून की नसें सूजने के कारण तन कर फूल जाती है, इससे उनमें कमजोरी आ जाती है. मल त्याग के बाद जोर लगाने से या कड़े मल के रगड़ खाने से खून की नसों में दरार पड़ जाती है और उन से खून बहने लगता है।
लक्षण- बवासीर का प्रमुख लक्षण है, गुदा मार्ग से रक्तस्राव जो शुरुआत में सीमित मात्रा में मल त्याग के समय, या उसके तुरंत बाद होता है या तो मल के साथ लिपटा होता है तो कभी-कभी यह धारा या पिचकारी के रूप में भी मलद्वार से निकलता है. यह खून ताज़ा और चमकीले लाल रंग का होता है. मगर कभी-कभी ये हलका बैंगनी या गहरे लाल रंग का भी हो सकता है. कभी तो खून के थक्के भी मल के साथ मिले होते हैं.
रोग के प्रारंभ में बवासीर के मस्से गुदा के बाहर नहीं आते हैं, मगर फिर जैसे- जैसे बीमारी पुरानी होती जाती है वे गुदा से बाहर निकलना शुरू कर देते हैं. ऐसे में उन्हें मल त्याग के पश्चात उन्हें भीतर ढकेलना पड़ता है. अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंचने पर तो वे इस स्थिति में पहुंच जाते हैं कि हमेशा गुदा के बाहर ही लटके रहते हैं और हाथों से ढ़केलने पर भी अंदर नहीं जाते. ऐसी अवस्था में एक चिपचिपे पदार्थ का स्त्राव होने लगता है जो उस स्थान पर खुजली पैदा कर देता है. इसके अलावा गुदा में भारीपन का एहसास, और हल्का सा दर्द भी अक्सर मौजूद होता है. कभी-कभी गुदाद्वार में जलन, खुजली और उस स्थान से उठी दुर्गंध भी अनेक लोग महसूस करते हैं.
रोग निदान-- इस बीमारी की जांच किसी भी कुशल चिकित्सक द्वारा कराई जा सकती है. गुदा के भीतरी रचना और उसका पता उंगली से जांच द्वारा और एक विशेष उपकरण के द्वारा लगाया जा सकता है, जिससे यह भी जानकारी मिल सकती है कि रोग कितना फैला हुआ है और उसमें कोई अन्य जटिलताएं तो शामिल नहीं है.
प्रारंभिक उपचार और सावधानियां-- रोग निदान के पश्चात प्रारंभिक अवस्था में कुछ घरेलू उपाय और दवाओं द्वारा रोग की तकलीफ पर काफी हद तक काबू पाया जा सकता है. सबसे पहले कब्ज को दूर कर मल त्याग को सामान्य और नियमित करना आवश्यक है। इसके लिए तरल पदार्थों, हरी सब्जियों एवं फलों का बहुतायत में सेवन करें. तली हुई चीजें, मिर्च मसाले युक्त गरिष्ठ भोजन ना करें. रात में सोते समय एक गिलास पानी में “इसबगोल पाउडर” के दो चम्मच डालकर पीने से भी मल निकास आसान और सुलभ हो जाता है. गुदा के भीतर रात को सोने से पहले और सुबह मल त्याग के पूर्व कोल्ड क्रीम को उंगली से भीतर लगाने से भी मल निकास सुगम होता है, दर्द कम होता है और ज़ख्म भर जाते हैं. मल त्याग के पश्चात गुदा के आसपास की अच्छी तरह सफाई और गर्म पानी का सेंक करना भी फायदेमंद होता है.
अधिकतर महिलाएं शर्म झिझक और संकोच की वजह से इस बीमारी के बारे में किसी से कह नहीं पाती और पीड़ा सहन करती रहती हैं और जब बीमारी जटिल रूप धारण कर लेती है . ऐसे में दवाओं से उपचार करके भी पूर्ण तक राहत मिलना संदिग्ध हो जाता है, और शल्यक्रिया की आवश्यकता होती है. अतः बेहतर होगा कि तकलीफ की शुरुआत में ही उपचार कर लिया जाये.